शक्ति का जागरण ➤ इस नवरात्रि आत्मा की सोई शक्तियों को जगाने का लें संकल्प, मन की ज्योति जगाएं
नवरात्र पर विशेष : देवियों की अष्ट भुजाएं अष्ट शक्तियों का प्रतिक
आत्मा को ज्ञान प्रकाश से आलोकित करना ही सच्चा जागरण नवरात्र पर्व आदिशक्ति की स्तुति, ज्ञान-ध्यान और आराधना की वह मंगलवेला है जिसमें हम अपने तप के बल से जीवन को नई दिशा दे सकते हैं। जिस तरह आदिशक्तियों ने परमशक्ति (परमात्मा) से शक्ति लेकर अपने आप को दिव्य शक्तियों, विशेषताओं और गुणों से भरपूर किया है, उसी तरह हम भी अपने जीवन को गुणवान, चरित्रवान, महान और पवित्र बना सकते हैं। देवी की अष्ट भुजाएं आत्मा की अष्ट शक्तियों का प्रतिक है। नवरात्र के प्रारम्भ में ही देवी की सबसे पहले स्थापना करते हैं अर्थात हमें अपने मन-बुद्धि में दिव्यता और पवित्रता का आह्वान करना है। अखण्ड ज्योति से तात्पर्य है कि ज्योतिबिंदु आत्मा सदा ज्योतिस्वरूप परमात्मा के ध्यान ध्यान, प्रेम में मग्न रहे। व्रत अर्थात हमें बुराई, निंदा, चुगली, परचिन्तन, बुरी आदतों को छोड़ने का व्रत करना है। माँ दुर्गा अर्थात दुर्गुणों का नाश करने वाली और माँ काली अर्थात काल पर विजय प्राप्त करने वाली। जब हम पवित्रता के व्रत का संकल्प लेकर महाशक्ति के संग ध्यान लगाएंगे तो हमारा जीवन भी देवी के समान दिव्य और पवित्र बन जायेगा।
देवियों की अष्ट भुजा अष्ट शक्तियों का प्रतीक
1. सहन करने की शक्ति ➤ सहनशीलता बाहरी और आतंरिक चुनौतियों को सहन करने की शक्ति है। पारिवारिक संबंधों में एकता, सामंजस्य और आपसी प्रेम के लिए सहनशक्ति जरुरी है। सहन करने वाले व्यक्ति का चरित्र हमेशा ऊंचा दर्शाया जाता है। महानता का आधार है सहनशीलता।
2. समाने की शक्ति ➤ जिसका जैसा स्वभाव-संस्कार है उसे उसी रूप में स्वीकार कर लेना। किसी की कमी कमजोरियों, गलतियों को अपने अंदर समा लेना ही समाने की शक्ति है।
3. परखने की शक्ति ➤ आज चारों ओर छल, कपट का वातावरण बना हुआ है। ऐसे समय में हमें परखने की शक्ति की बहुत आवश्यकता होती है। आध्यात्मिक ज्ञान की समझ से व्यक्ति में परखने की शक्ति का विकास होता है।
4. निर्णय करने की शक्ति ➤ हमारी बुद्धि एकाग्र है और परमात्मा के साथ जुड़ी है तो हम कभी भी परखने और निर्णय के समय धोखा नहीं खा सकते और सही समय पर सही निर्णय लेकर सफलता स्वरूप बन जाते हैं।
5. सामना करने की शक्ति ➤ जब हमारे जीवन और कर्म में सच्चाई, ईमानदारी होती है तो यह शक्ति स्वतः आने लगती है। इस शक्ति से ही हम बड़े से बड़े परिस्थितियों का सामना कर सकते हैं।
6. सहयोग करने की शक्ति ➤ सहयोग करने की शक्ति दूसरों के प्रति ध्यान और समय देना, अपने अनुभव एयर ज्ञान की सेवा देना और उनके साथ मिलकर काम करने की क्षमता है। दूसरों को आगे बढ़ने, उनकी कमजोरियों एवं चुनौतियों का दूर करने में मदद करना है।
7. विस्तार को संकीर्ण करने की शक्ति ➤ कछुआ को जब कोई परेशानी दिखती है तो वह अपने आप को संकीर्ण कर लेता है। रोजाना सुबह 15-20 मिनट परमात्मा का आह्वान कर मेडिटेशन करने से मन सदा संतुलित, एकाग्र रहता है। मेडिटेशन से अपने आप को बाहरी बातों, परिस्थितियों से अलग करने का अभ्यास करें। इससे मन की शक्ति बढ़ती है।
8. समेटने की शक्ति ➤ भूतकाल में आपके साथ जो घटना घटित हुई उसे भूलना सीखें। हम दूसरों को समझाते हैं भूल जाओ, छोटी सी बात है, माफ़ कर दो, दिल पर नहीं लिया करो। इसी तरह अपने मन को भी समझाएं। नकारात्मक विचार। शब्द या कार्य को तुरंत रोकने शक्ति। समेटो और तुरंत आगे बढ़ो।
नौ दिन ही क्यों, जीवनभर क्यों नहीं...
देवी की आराधना में हम नौ दिन सात्विक भोजन, सकारात्मक विचार, जप-तप, नियम-संयम का पालन कर सकते हैं तो जीवनभर क्यों नहीं? नौ दिन के नियम-संयम से हमारा मन सात्विक हो जाता है तो जीवनभर के व्रत से आत्मा सतोप्रधान क्यों नहीं बन सकती! नियम-संयम तथा योगबल से आत्मा की सोई शक्तियां पुनः जागृत हो जाती है, साथ ही आत्मा दिव्या गुणों, विशेषताओं से भरपूर हो जाती है। ऐसी आत्मा देव स्वरुप और देव पद को प्राप्त करती है। अपनी आत्मा की सोई शक्तियों को पुनः जगाने का वर्तमान में वही स्वर्णिम काल चल रहा है। आदिशक्तियों के भी रचनाकार महाशक्ति (परमात्मा) इस धरा पे अवतरित होकर मनुष्य आत्माओं के लिए फिर से देवपद पाने के लिए शक्तियां प्रदान कर रहे हैं। अब यह हमारे ऊपर है की हम कितना उन्हें ग्रहण कर सकते हैं।
अज्ञान की नींद से जागरण
जागरण अर्थात अपनी आत्मा का जागरण, आत्मा की शक्तियों का जागरण। आत्मा की दिव्य शक्तियाँ जो अज्ञानता के कारण सोई हुई हैं उन्हें जगाना। उनका आह्वान करना और अपने जीवन को दिव्य गुणों से सुसज्जित कर पवित्र बनाना। रात्रि में ही जागरण किया जाता है क्योंकि अज्ञान को रात्रि की संज्ञा दी गई है और ज्ञान को प्रकाश अर्थात दिन।
परमात्मा की याद में बना भोजन ही प्रसाद
जैसा खाओगे अन्न, वैसा होगा मन। परमात्मा की याद में सात्विक भोजन बनाकर खाएंगे तो हमारा मन भी सात्विक होगा। उसमें दिव्यता आएगी। जब भोजन सात्विक मन की स्थिति में पूरी पवित्रता के साथ बनाते हैं तो वह प्रसाद बन जाता है। आज से संकल्प करें परमात्मा को रोजाना भोग स्वीकार कराकर ही भोजन ग्रहण करेंगे। तो वह भोजन भी प्रसाद बन जायेगा। इसी तरह घर में जो धन आ रहा है, वह भी दुआओं भरा, आशीर्वाद और मेहनत से भरपूर होगा तो वह वाइब्रेशन साथ में आएंगे।