ब्रह्माकुमारीज़ द्वारा ब्रेनवॉशिंग का एक मजेदार उदाहरण
इसे एक कहानी से समझते हैं -
एक राजा ने गलती से एक साधु की तपस्या भंग कर दी और इसके सजा के रूप में साधु ने राजा को शाप दे दी कि राजा आदमी से सूअर बन जाए। राजा सूअर बनने से पहले साधु से अपनी द्वारा हुई गलती की बहुत क्षमा मांगी और साधु को अहसास कराया कि गलती अनजाने में हुई है तब साधु ने कहा कि हे राजन, शाप जो मैंने तुझे दे दिया वो वापिस नहीं ले सकता लेकिन तुम्हारे सूअर बनने के बाद अगर तुम्हारा बेटा अपने तलवार से सूअर का गर्दन काट दे तो तुम्हें इस जीवन से मुक्ति मिल जाएगी। राजा सूअर बन गए और जानवरों वाली जीवन व्यतीत करने लगे।
वर्षों बाद राजा का बेटा शिकार पे निकला तभी उसकी नजर एक सूअर पे पड़ी जो कीचड़ में लेटा हुआ था, उसके पीठ पर 10-12 छोटे-छोटे सूअर के बच्चे लेटे हुए थे। राजा का बेटा अपना तलवार लिए धीरे-धीरे सूअर के तरफ बढ़ने लगा। आदमी की आहट पाकर सूअर सतर्क हो गया, अपनी नजरें घुमाकर शिकारी के तरफ देखा और देखते ही अपने बेटे को पहचान गया। उसने अपने बेटे से कहा कि पुत्र... मैं तुम्हारा पिता हूँ और एक शाप के वजह से यहाँ सूअर बन गया लेकिन अब मैं उस जीवन में लौटना नहीं चाहता, मुझे तो इस कीचड़ में ही महल से ज्यादा सुख मिल रहा है। इसलिए मैं तुमसे विनती करता हूँ कि तुम मुझे छोड़ दो और पूरे राज्य राज करो। राजा के बेटे ने सूअर की एक न सुनी और अपनी तलवार से उसकी गर्दन धड़ से अलग कर दी।
राजा अपने असली रूप में आ गए और अपने पुत्र का धन्यवाद करते हुए कहा कि मुझे सूअर बनकर सूअर वाले जीवन और इस कीचड़ से इतनी आसक्ति हो गई थी कि इसके आगे पूरा राज्य-भाग्य बेकार और फीका लग रहा था।
आइये अब थोड़ी विस्तार से समझते हैं -
इन बातों से आपको समझ आएगा कि ब्रह्माकुमारियाँ कैसे आपका ब्रैनवॉश करती हैं।
Brahma Kumaris Brainwash
चरण 1: प्रारंभिक कोर्स
चरण 2: नियमित छात्र
सफ़ेद और शरीर पे पुरे कपड़े जो की शांति, सादगी और शालीनता का प्रतिक माना जाता है उन्हें ये पहनावा कार्टून जैसा लगता है। क्योंकि पाश्चात्य सभ्यया के पहनावे ने उनके दिमाग में ऐसे ऊँगली कर रखा है कि उन्हें लगता कि नग्नता और अर्धनग्नता के आगे कोई फैशन ही नहीं।ब्रह्मकुमारियों द्वारा दिए गए ज्ञान का खुराक इतना प्रभावी होता है हमारे ऊपर कि हम जहाँ जाते ज्ञान की ही बातें करते और चाहते कि सामने वाले का भी भला हो जाये। और ज्ञान की बात करें भी क्यों नहीं जब हमें ज्ञान नहीं था तो गन्दी बातों की उलटी करते थकते नहीं थे तो अब ज्ञान की बात करने से डरे क्यों? यही तो ज्ञान का सुख है। दूसरों के कल्याण और दूसरों पर उपकार से ये सुख और बढ़ता जाता है। कई लोग तो खान-पान बदलने को लेकर भी बड़े मजाक उड़ाते हैं कि सौ चूहे खाकर बिल्ली हज़ को चली। अब उन्हें ये बात कैसे समझाएं कि जब हम छोटे थे तो कई ऐसी चीजें जो मैं बताना जरुरी नहीं समझता वो हम अज्ञानवश करते थे, जो बड़े होने के बाद नहीं करते, क्योंकि अब ज्ञान हो आया कि क्या सही है और क्या गलत। तो जब जिस बात का ज्ञान हो जाए उसे बदल ही लेना चाहिए। ज्ञान का मतलब ही है जीवन में परिवर्तन, और यही परिवर्तन हमें सुख देती है।
"भोगी क्या जाने अतीन्द्रिय सुख का स्वाद।"
चरण 3: एक सफल योगी जीवन
कहते हैं सागर में कितने भी गन्दगी डाल दो वो उसे अपनी लहरों से बाहर फेंक देता है। उसी तरह भगवान भी सागर है, उसकी पवित्रता सागर समान है, उसकी शक्तियां सागर समान है। उसके इर्द-गिर्द भी गन्दगी फ़ैलाने वाले और गन्दी नियत वाले टिकते नहीं।
चरण 4: चेतना जागृति
कहा जाता है पवित्रता सर्व गुणों की जननी है और जिसमें दैवी गुण हो वह स्वतः ही सबका प्यारा बन जाता है तथा जहाँ आपस में प्यार और स्नेह हो वहां सुख और शांति भी स्वतः चली आती है।
वास्तविक ब्रेनवॉश तो उन जिहादी विचारधाराओं को कहेंगे जहाँ धर्म के नाम पर मौत का खेल खेला जा रहा तथा अपनी-अपनी रोटियां सेंकी जा रही।