क्या ब्रह्माकुमारीज़ में लोगों का ब्रेनवॉश किया जाता है, क्या है पूरा सच?
संक्षिप्त उत्तर: हाँ वे लोगों का ब्रेनवॉश करते हैं। वास्तव में, वे लोगों के दिमाग, मन, बुद्धि और संस्कारों की अच्छी धुलाई करते हैं। और वे कुछ इस तरह से आपका दिमाग साफ़ करते हैं कि आपको भी पता नहीं चलता कि कब आप बिलकुल बदल से गए। ब्रह्माकुमारीज़ द्वारा ब्रेनवॉश की प्रक्रिया तो विश्व प्रसिद्ध है, बल्कि इस ब्रेनवॉश की वजह से लाखों का जीवन बिलकुल बदल गया।
ब्रह्माकुमारीज़ द्वारा ब्रेनवॉशिंग का एक
मजेदार उदाहरण
(An Example Of Brainwashing By Brahma Kumaris)
इसे एक कहानी से समझते हैं -
एक राजा ने गलती से एक साधु की तपस्या भंग कर दी और इसके सजा के रूप में साधु ने राजा को शाप दे दी कि राजा आदमी से सूअर बन जाए। राजा सूअर बनने से पहले साधु से अपनी द्वारा हुई गलती की बहुत क्षमा मांगी और साधु को अहसास कराया कि गलती अनजाने में हुई है तब साधु ने कहा कि हे राजन, शाप जो मैंने तुझे दे दिया वो वापिस नहीं ले सकता लेकिन तुम्हारे सूअर बनने के बाद अगर तुम्हारा बेटा अपने तलवार से सूअर का गर्दन काट दे तो तुम्हें इस जीवन से मुक्ति मिल जाएगी। राजा सूअर बन गए और जानवरों वाली जीवन व्यतीत करने लगे।
वर्षों बाद राजा का बेटा शिकार पे निकला तभी उसकी नजर एक सूअर पे पड़ी जो कीचड़ में लेटा हुआ था, उसके पीठ पर 10-12 छोटे-छोटे सूअर के बच्चे लेटे हुए थे। राजा का बेटा अपना तलवार लिए धीरे-धीरे सूअर के तरफ बढ़ने लगा। आदमी की आहट पाकर सूअर सतर्क हो गया, अपनी नजरें घुमाकर शिकारी के तरफ देखा और देखते ही अपने बेटे को पहचान गया। उसने अपने बेटे से कहा कि पुत्र... मैं तुम्हारा पिता हूँ और एक शाप के वजह से यहाँ सूअर बन गया लेकिन अब मैं उस जीवन में लौटना नहीं चाहता, मुझे तो इस कीचड़ में ही महल से ज्यादा सुख मिल रहा है। इसलिए मैं तुमसे विनती करता हूँ कि तुम मुझे छोड़ दो और पूरे राज्य राज करो। राजा के बेटे ने सूअर की एक न सुनी और अपनी तलवार से उसकी गर्दन धड़ से अलग कर दी।
राजा अपने असली रूप में आ गए और अपने पुत्र का धन्यवाद करते हुए कहा कि मुझे सूअर बनकर सूअर वाले जीवन और इस कीचड़ से इतनी आसक्ति हो गई थी कि इसके आगे पूरा राज्य-भाग्य बेकार और फीका लग रहा था।
यह तो मात्र एक कहानी है, कहने का तात्पर्य यह है कि हमें गन्दगी देखने की, गन्दे शब्द बोलने की, गन्दे काम करने की, गन्दी बातें सोचने की, गन्दे खान-पान की, गन्दगी सुनने की, गन्दगी सूंघने की, गन्दगी... गन्दगी... गन्दगी...। गन्दगी से हम इतने आसक्त हो गए हैं कि इसके विपरीत कोई ये कहे कि अच्छी चीजें देखो, अच्छी चीजें पढ़ो, अच्छी बातें सुनो, अच्छे बोल बोलो, शुद्ध खान-पान अपनाओ, शुद्ध और सकारात्मक जीवनशैली अपनाओ तो हमें लगता है कि ये हमें पागल बना रहा है, हमारा ब्रेनवॉश कर रहा है। अच्छाई, शुद्ध और सकारात्मक जैसी तो कोई चीज ही नहीं होती।
ये गलती भी हमारी नहीं क्योंकि हमारे अंदर बचपन से ही मोबाइल के माध्यम से, गन्दे नॉवेल और पत्रिकाओं के माध्यम से, टीवी के माध्यम से, इंटरनेट के माध्यम से, समाचार पत्र (समाचार चैनलों) में दिखाए जाने वाले विज्ञापनों के माध्यम से, सोशल मीडिया के माध्यम से गन्दगी भरी जा रही है। जब हमारे अंदर गन्दगी कूट-कूट के भरी हुई है तो अच्छी बातें ब्रेनवॉश ही लगेगी। जहाँ लड़कियों माल समझा जाता हो और राह चलते छेड़ने की और उपभोग की वस्तु समझी जाती हो वहां कोई ये कहें कि ये लड़कियां बहन जैसी है तो कैसे अच्छा लगेगा? जहाँ लड़कियों को भी हॉट, पटाखा, स्पाइसी जैसे शब्द सुनकर ख़ुशी होती हो, जहाँ 30-30 सेकंड के रील्स बनाकर नंगे नृत्यों की होड़ लगी हो, ऐसे समाज में भाई-बहन और ब्रह्मचर्य जैसे शब्द कैसे हज़म होंगे! हमारे प्राचीन ग्रन्थ बताते हैं कि एक समय किसी स्त्री के कपड़े उतारने के कारण महाभारत हो गए, आज के स्त्रियों को पुरे कपड़े पहनने को कह दो तो महाभारत हो जाती हैं। ऐसे समाज में पवित्रता और सद्गुण जैसे शब्द कैसे हज़म होंगे?
आइये अब थोड़ी विस्तार से समझते हैं -
(Brainwash by Brahma Kumaris In Detail)
Brhma Kumaris Fully Exposed
Brahma Kumaris (CULT) Exposed
इन बातों से आपको समझ आएगा कि ब्रह्माकुमारियाँ कैसे आपका ब्रैनवॉश करती हैं।
Brahma Kumaris Brainwash
चरण 1: प्रारंभिक कोर्स
चरण 2: नियमित छात्र
जब आपका 7 दिवसीय कोर्स समाप्त होता है तो हम पहले चरण से गुजर कर दूसरे चरण में प्रवेश करते हैं तत्पश्चात आपको ब्रह्माकुमारीज़ का नियमित छात्र बनाया जाता है। और कुछ इस तरह से आपके ब्रेनवॉश की प्रक्रिया शुरू होती है। इन दिनों में आपको बताया जाता है कि यही एक सच्चा ज्ञान है जो भगवान अपने बच्चों को देते हैं और आश्चर्य की बात तो ये है कि इन सब बातों को समझने के लिए वो हमें 7 दिनों का समय देते हैं। 7 दिनों के बाद भी प्रश्न-उत्तर का दौर जारी रहता है जब तक कि हमारे मन से सारे संशय मिट न जाये। बुरा तो तब लगता है जब ब्रह्माकुमारीज़ के सदस्यों द्वारा न कोई आडम्बर किया जाता, न कोई दिखावे का चमत्कार, न कोई मन्त्र कान में फूंकते, न कोई मंत्र जाप करने की विधि बताते। सबकुछ सामने और स्पष्ट रख देते, अवसर देते सुनने और समझने का तथा बाद में ये भी कह देते कि कोई जोर-जबरदस्ती नहीं आप यहाँ के ज्ञान-योग से संतुष्ट हों तभी आइये। अजीब बात है.. हमें तो भेड़ों वाली अंधी दौड़ दौड़ने की आदत है, इतनी स्पष्टवादिता हमें भाति नहीं।
उसके बाद जैसे ही घरवालों को पता चलता है कि ये ब्रह्माकुमारीज़ में जा रहा तो वो ब्रह्माकुमारीज़ के बारे में जानकारियां जुटानी शुरू करते फिर उनको जानकारी देने वाले भी ऐसे लोग होते जिनको ब्रह्माकुमारीज़ का 'ब' भी नहीं पता होता, वो उनको अनेक मिर्च-मशाले लगाकर ऐसी-ऐसी भयानक जानकारियां देते कि वो बौखला उठते हैं। फिर उन्हें वो दुश्मन लगने लगता कि अब ये घर से भाग जायेगा, शादी नहीं करेगा, शुद्ध खान-पान अपना लेगा, वैवावहिक जीवन वाले हैं तो वासना की पूर्ति नहीं हो पायेगी, आदि-आदि। अब उसे तो ब्रह्माकुमारीज़ में वसुधैव कुटुम्बकम तथा Charity Begins At Home की शिक्षा दी गई है, वो चाहता कि मेरे साथ मेरे घर वाले भी ज्ञान को समझे। लेकिन ऐसा करके वो परिवार का सारा सुख ही छीन लेना चाहता है, क्योंकि उन्हें इन्हीं चीजों में सारा संसार नजर आता है। अब कोई किसी का संसार ही छीन लेने की बात करे तो दुश्मनी तो बनती है।
सफ़ेद और शरीर पे पुरे कपड़े जो की शांति, सादगी और शालीनता का प्रतिक माना जाता है उन्हें ये पहनावा कार्टून जैसा लगता है। क्योंकि पाश्चात्य सभ्यया के पहनावे ने उनके दिमाग में ऐसे ऊँगली कर रखा है कि उन्हें लगता कि नग्नता और अर्धनग्नता के आगे कोई फैशन ही नहीं।
ब्रह्मकुमारियों द्वारा दिए गए ज्ञान का खुराक इतना प्रभावी होता है हमारे ऊपर कि हम जहाँ जाते ज्ञान की ही बातें करते और चाहते कि सामने वाले का भी भला हो जाये। और ज्ञान की बात करें भी क्यों नहीं जब हमें ज्ञान नहीं था तो गन्दी बातों की उलटी करते थकते नहीं थे तो अब ज्ञान की बात करने से डरे क्यों? यही तो ज्ञान का सुख है। दूसरों के कल्याण और दूसरों पर उपकार से ये सुख और बढ़ता जाता है। कई लोग तो खान-पान बदलने को लेकर भी बड़े मजाक उड़ाते हैं कि सौ चूहे खाकर बिल्ली हज़ को चली। अब उन्हें ये बात कैसे समझाएं कि जब हम छोटे थे तो कई ऐसी चीजें जो मैं बताना जरुरी नहीं समझता वो हम अज्ञानवश करते थे, जो बड़े होने के बाद नहीं करते, क्योंकि अब ज्ञान हो आया कि क्या सही है और क्या गलत। तो जब जिस बात का ज्ञान हो जाए उसे बदल ही लेना चाहिए। ज्ञान का मतलब ही है जीवन में परिवर्तन, और यही परिवर्तन हमें सुख देती है।"भोगी क्या जाने अतीन्द्रिय सुख का स्वाद।"
चरण 3: एक सफल योगी जीवन
कुछ लोगों को लगता है कि ब्रह्माकुमारीज़ से वही लोग जुड़ते हैं जो स्नेह और सम्मान के भूखे-प्यासे लोग हैं। मैं उन्हें बताना चाहता हूँ कि यहाँ भूखे-प्यासे नहीं बल्कि प्रेम और सम्मान से भरे हुए हैं तभी तो दूसरों को दे पाते हैं। दुनिया में ऐसा कोई जीव नहीं जिसे प्रेम और सम्मान नहीं चाहिए, क्या आपको नहीं चाहिए? क्या आपको अपने लिए गालियां और अभद्र बातें सुननी पसंद है? और अगर नहीं है तो आपको दूसरों को भूखे-प्यासे कहना बंद कर देनी चाहिए। और अगर स्नेह-प्रेम के भूखे भी हैं तो क्या हुआ? यहाँ तो वासना और कामेच्छाओं के भूखे-प्यासे लोग राक्षसों की तरह घूम रहे हैं जो समय मिलते ही राह चलते कन्याओं-महिलाओं को अपना शिकार बना लेते। उनसे तो अच्छे हैं।
दान-दक्षिणा पर अपवाद के विषय पर मेरा अपना अनुभव है कि मैं 12 वर्षों से इस संस्था से जुड़ा हूँ और 11 वर्षों से समर्पित रूप से सेवाएं दे रहा हूँ। आजतक मैंने यज्ञ को 1 रुपये का दान नहीं दिया, और ना ही संस्था ने मुझसे कभी कहा की रूपये दो। बल्कि ये कह सकते हैं कि आज जो भी मेरे पास है वो यज्ञ ने दिया है। हाँ क्योंकि ये एक परिवार है तो यहाँ भौतिक साधन और सुविधाओं के लिए कई और जरूरतें होती हैं इसके लिए जो सक्षम हैं वो अपनी स्वेच्छानुसार यज्ञ की जरूरतों को पूरा करते हैं। जो सक्षम नहीं यज्ञ उनपर एक पैसे का भी दबाव नहीं देता।
ब्रह्मचर्य सिद्धांत: ब्रह्माकुमारीज़ के लिए ब्रह्मचर्य एक विशेष कड़क टॉपिक है। सारा झमेला ही यही से और सारे सुख भी यही से शुरू होते हैं। जो अविवाहित है उसके परिवार को उसके विवाह की चिंता खाये जा रही, जो विवाहित है उसके पति या पत्नी को उसके कामेच्छाओं की पूर्ति न होने की चिंता खाये जा रही। कोई-कोई महानुभाव हमें ज्ञान देते हैं कि केवल बाह्य और शारीरिक ब्रह्मचर्य से किसी को स्वर्ग नहीं मिलने वाला। आश्चर्य की बात है कि कितनी सहज भाव से लोग सच बात बोल जाते हैं। सोचने की बात है कि जब केवल बाह्य या शारीरिक ब्रह्मचर्य से किसी को स्वर्ग नहीं मिलता तो उन्हें क्या मिलेगा जिन्हें ब्रह्मचर्य और पवित्रता शब्द से दूर-दूर तक कोई रिश्ता ही नहीं! बल्कि मैं तो उन महानुभावों को बताना चाहता हूँ कि आप सच कहते हैं कि केवल बाह्य और शारीरिक ब्रह्मचर्य से किसी को स्वर्ग नहीं मिलता तभी तो ब्रह्माकुमारीज़ ने पवित्रता और ब्रह्मचर्य के ऊपर इतना गुह्य और गहन ज्ञान लाकर सामने रख दिया लोगों को वर्षों लग जाते केवल पवित्रता और ब्रह्मचर्य को समझने के लिए। एक पवित्र जीवनशैली के अंतर्गत कई चीजें आती है- पवित्र खान-पान, पवित्र सोच, पवित्र बोल, पवित्र व्यवहार, पवित्र दृष्टि, पवित्र धन, पवित्र मन, पवित्र तन आदि-आदि। ब्रह्माकुमारीज़ का आधार ही पवित्रता है।
मेरा मानना है कि जो भी ब्रह्माकुमारीज़ से जुड़ते हैं वो यहां सिखने-समझने और सुधरने-संवरने के लिए आते हैं। अच्छे भी हैं और अच्छे बन भी रहे हैं, इसलिए एक-दो को देखकर पुरे ब्रह्माकुमारीज़ परिवार को एक ही तराजू में तौलने की गलती ना करें। इस मार्ग पे वही चल पाते हैं जो दैवी गुण अपनाने और ज्ञान-योग के सुख लेने की भावना से आते हैं वरना कई गन्दी नियत से आए और गए, क्योंकि यहाँ की पवित्रता और मर्यादाएं उन्हें यहाँ टिकने नहीं देती।
कहते हैं सागर में कितने भी गन्दगी डाल दो वो उसे अपनी लहरों से बाहर फेंक देता है। उसी तरह भगवान भी सागर है, उसकी पवित्रता सागर समान है, उसकी शक्तियां सागर समान है। उसके इर्द-गिर्द भी गन्दगी फ़ैलाने वाले और गन्दी नियत वाले टिकते नहीं।
कुछ कहते हैं कि मर्यादाओं का डर दिखाकर और संस्था से निकाल देने की धमकी देकर ये लोगों को न घर का रहने देते न घाट का। इतिहास ग्वाह है कि चाहे वो परिवार या समाज की मर्यादा तोड़ने वाले हों, चाहे स्कूल या कॉलेज की मर्यादा तोड़ने वाले हों, चाहे किसी राज्य या देश की मर्यादा तोड़ने वाले हों या किसी आश्रम की मर्यादा तोड़ने वाले हों वो सच में न घर के होते न घाट के। बल्कि ब्रह्माकुमारीज़ द्वारा ऐसे लोगों को भी कई अवसर दिए जाते हैं उन्हें सुधरने का और खुद को फिर से सही साबित करने का। वे घर का न घाट का तब होते जब वे इन अवसरों को अनदेखा कर काम, क्रोध, लोभ, मोह व अहंकार के वशीभूत होकर बार-बार किसी को चोट पहुंचाते हैं, किसी को अपनी गन्दी भावना या गन्दी नियत से आहत करते हैं या कुछ ऐसे अपराध जो अक्षम्य होते हैं, वरना लाखों लोग इस मार्ग पे चल रहे और तथा अपनी पुरुषार्थी और तपस्वी जीवन से लाखों लोगों को जीने की प्रेरणा दे रहे।
चरण 4: चेतना जागृति
ब्रह्माकुमारीज़ में बताया जाता है कि आप अपने पुरुषार्थ और पवित्रता के बल से स्वर्ग के राज घराने में जन्म लेते हैं। इसी बात का कुछ लोग फायदा उठाकर एक-दूसरे को भड़काते हैं कि क्यों एक काल्पनिक कहानी (जिसका कोई अस्तित्व नहीं) के पीछे अपना जीवन बर्बाद कर रहे हो। माना कि आपके हिसाब से स्वर्ग का कोई अस्तित्व नहीं, लेकिन स्वर्गमय जीवन का तो अस्तित्व है। कौन नहीं चाहता कि उसका जीवन स्वर्गमय हो? यह भी सही है कि ब्रह्माकुमारीज़ से जुड़ने के बाद कुछ परिवारों में कुछ समय तक खान-पान और नियमित दिनचर्या को लेकर आपस में थोड़ी हलचल आ जाती है, लेकिन कुछ दिनों बाद अपने दैवी गुणों और अपने सकारात्मक विचारों के कारण वो परिवार और समाज का सबसे पसंदीदा व्यक्ति बन जाता है, सबका प्यारा बन जाता है। ये है पवित्रता की ताकत।
कहा जाता है पवित्रता सर्व गुणों की जननी है और जिसमें दैवी गुण हो वह स्वतः ही सबका प्यारा बन जाता है तथा जहाँ आपस में प्यार और स्नेह हो वहां सुख और शांति भी स्वतः चली आती है।
परमात्मा की सटीक जानकारी: परमात्मा के बारे में ब्रह्माकुमारीज़ का मानना है कि ईश्वर वो हो जिसे सभी धर्म स्वीकार करता हो। हिन्दू, मुस्लिम, सिख या ईसाई सबका ईश्वर एक हो और वो उनके उसी रूप पर अपना विश्वास रखते हों। ऐसा कौन है जिसे हम सभी मानते हैं लेकिन धर्म के कुछ ठेकेदारों ने अपनी डफली अपना राग सुना-सुना कर सबको भ्रमित कर दिया। हिन्दू धर्म में अक्सर कहा जाता है कि ईश्वर ज्योति स्वरुप है जिसका गीता और वेदों में भी वर्णन है। उसी के यादगार के रूप में हिन्दू भगवान शिव की आराधना ज्योतिर्लिंग (लिंग अर्थात प्रतिक या चिन्ह) के रूप में करते हैं। ज्योतिर्लिंग अर्थात भगवान शिव ज्योति स्वरुप हैं। मुस्लिम खुदा के लिए नूर-ए-इलाही शब्द का प्रयोग करते हैं, नूर अर्थात प्रकाश (ज्योति)। ईसाईयों के मशीहा माने जाने वाले यीशु स्वयं इस बात को स्वीकार करते हैं और बाइबिल में लिखा है कि God is light, I am the son of God. I am not God. यह सभी मत एक दूसरे से बहुत हद तक मेल कहते हैं लेकिन कुछ धर्मांध लोग धर्म के नाम पर नफरत की आग फैला मौत का तमाशा देख रहे।
वास्तविक ब्रेनवॉश तो उन जिहादी विचारधाराओं को कहेंगे जहाँ धर्म के नाम पर मौत का खेल खेला जा रहा तथा अपनी-अपनी रोटियां सेंकी जा रही।
योग: योग प्राचीन काल से ही एक बड़े ही गुह्य और गहन विषय मानी जाती है। ब्रह्माकुमारीज़ ने योग के सैकड़ो विधियों से अवगत कराया, ना कोई मंत्र ना कोई तंत्र। पूरी दुनिया में हज़ारों भाषाएँ बोली जाती है जिन्हें हिन्दी, संस्कृत, उर्दू या अंग्रेजी नहीं आती उनके लिए भी उनकी भाषा में भगवान को याद करने के सफल और सरल मार्ग बताये। जब श्लोक, छंद और आयत इन सभी का भावार्थ अपनी-अपनी भाषाओँ में समझी जा सकती है तो भगवान जो सबका पिता है उसे अपनी-अपनी भाषाओँ में क्यों नहीं याद किया जा सकता, उसे धर्म, भाषा और संस्कृति में बाँट लेना कहाँ तक उचित है? ब्रह्माकुमारीज़ द्वारा बताये गए योग की विधि सही है या नहीं ये तो उनसे जुड़े लोगों के चेहरे और चलन देखकर ही पता लगाया जा सकता है। योग भट्टी की तरह होता है जिसमें पड़कर मनुष्य आत्माओं के संस्कार बदल जाते हैं, विकार स्वतः ही मिटने लगते हैं, चेहरे पर एक अलौकिक तेज आती है। अधिक जानकारी हेतु आपको ब्रह्माकुमारीज़ आश्रम जाना चाहिए। निष्कर्ष: ब्रह्माकुमारीज़ की ये ब्रैनवॉश की प्रक्रिया बड़ी अनोखी है। मैं तो कहता हूँ कि जब दिमाग में कचरा भरा हो और हमें वहां कोई अच्छी चीज डालनी हो तो ब्रैनवॉश तो बनती है। बिना वॉश किए कोई अच्छी चीज भी कचरे के साथ डाल दी जाये तो वो भी कचरा बन जाता है।
इस लेख को फरवरी 2022 में ब्रह्माकुमारीज़ के द्वारा प्रकाशित होने वाली पत्रिका ज्ञानामृत में प्रकाशित किया गया, जिसे नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके देखा जा सकता है।
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