सम्मान तो बनता है...

सम्मान तो बनता है...

Samman Toh Banta Hai

बेटा घर में घुसते ही बोला :- "मम्मी कुछ खाने को दे दो यार बहुत भूख लगी है।"
यह सुनते ही मां ने कहा :- "बोला था ना ले जा कुछ कॉलेज, सब्जी तो बना ही रखी थी।"
बेटा बोला : "यार मम्मी अपना ज्ञान ना अपने पास रखा करो, अभी जो कहा है वो कर दो बस और हाँ... रात में ढंग का खाना बनाना पहले ही मेरा दिन अच्छा नहीं गया है। 
यह बोलकर बेटा कमरे में चला गया, वहां गया तो उसकी आंख लग गई। 
माँ ने जाकर उसको जगा दिया कि कुछ खा कर सो जाए। 
चीख कर वो मां को डांट लगाने लगा कि जब आँख लग गई थी तो उठाया क्यों तुमने.?
माँ ने कहा : तूने ही तो कुछ बनाने को कहा था। 
वो बोला : "मम्मी एक तो कॉलेज में टेंशन ऊपर से तुम यह अजीब से काम करती हो, दिमाग लगा लिया करो कभी तो..!!
तभी दरवाजे की घंटी बजी। दरवाजा खोला तो सामने बेटी कड़ी थी। 
माँ ने प्यार से पूछा : "आ गई मेरी बेटी कैसा था दिन.?"
बैग पटक कर बोली : "मम्मी आज पेपर अच्छा नहीं हुआ।"
माँ ने कहा : "कोई बात नहीं, अगले विषय पर ध्यान केंद्रित करो।"
बेटी चीख कर बोली : "अगला विषय का क्या रिजल्ट तो ख़राब होगा ही ना, मम्मी यार तुम जाओ यहाँ से, तुमको कुछ नहीं पता"
माँ उसके कमरे से भी निकल आई..!!
शाम को पतिदेव आए तो उनका भी मुँँह लाल था। थोड़ी बात करने की कोशिश की, जानने की कोशिश कि तो वो भी झल्ला के बोले : "यार मुझे अकेला छोड़ दो..!! पहले ही बॉस ने क्लास ले ली है और अब तुम शुरू हो गई।"
आज कितने सालों से यही सुनती आ रही थी। सबकी पंचिंंग बैग जैसे की वो ही थी।
फिर वो सबको खाना खिला कर कमरे में चली गई। 
अगले दिन से उसने किसी से भी पूछना कहना बंद कर दिया। 
जो जैसे कहते कर के दे देती। पति आते तो चाय दे देती और अपने कमरे में चली जाती। 
पूछना ही बंद कर दिया कि दिन कैसा था.?
बेटा कॉलज और बेटी स्कूल से आती तो वो ना कुछ बोलती ना पूछती। 
यह सिलसिला काफी दिन चला..
रविवार के दिन तीनो उसके पास आए और बोले तबियत ठीक है ना.?
क्या हुआ है इतने दिनों से चुप हो..!
बच्चे भी हैरान थे..!
"थोड़ी देर चुप रहने के बाद वो बोली : मैं तुम लोगो की पंचिंग बैग हूँ क्या.? जो आता है अपना गुस्सा या अपना चिड़चिड़ापन मुझपे निकाल देता है..! मैं भी इंतज़ार करती हूं तुम लोंगो का.. पूरा दिन काम करके कि अब मेरे बच्चे आएंगे, पति आएंगे तो दो प्यार के बोल बोलेंगे और तुम लोग आते ही मुझे पंच करना शुरु कर देते हो। अगर तुम लोगों का दिन अच्छा नहींं गया तो क्या वो मेरी गलती है.? क्या हर बार मुझे झिड़कना सही है.? कभी आपलोगों ने पूछा कि मुझे दिन भर में कोई तकलीफ तो नहीं हुई..? तीनो चुप थे..!
सही तो कहा मैंने , दरवाजे पे लटका पंचिंग बैग समझ लिया है मुझे..! जो आता है मुक्का मार के चलता बनता है.. तीनों शरमिंदा थे। 
हर माँ, हर बीवी अपने बच्चों और पति के घर लौटने का इंतज़ार करती है उनसे पूछती है कि दिन भर में सब ठीक था या नहीं, लेकिन कभी-कभी हम उनको ग्रांटेड ले लेते हैं। हर चीज़ का गुस्सा उन पर निकालते हैं, कभी-कभी तो यह ठीक है, लेकिन अगर ये आपके घरवालों की आदत बन जाए तो आप आज से ही ये बंद कर दें।

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