रावण कहलाने का अहंकार।

जब दोनों एक ही कथा के पात्र हैं तो
राम से नफरत और रावण से मोहब्बत क्यों ?
जब रावण शब्द से इतना लगाव है तो
स्वयं प्रति नफरत झेलने में जिल्लत क्यों ?



कैसे मान लें जिसका आदर्श रावण है
वो महिलाओं पर अत्याचार नहीं करेगा !
ये वो युग तो नहीं है जो 14 वर्षों तक
स्त्री को बंधक बना व्यभिचार नहीं करेगा।



क्या तुमको इतना विश्वास है कि तुम
इस रावण नाम को सार्थक कर पाओगे !
वरना वो दिन दूर नहीं जब पुतलों के रूप में,
लाखों के भीड़ में चौराहे पर जलाये जाओगे।



वो असुर रावण तो महल-अटारियों में रहा
वही दैवी पुरुषोत्तम राम का घर वन था।
जब किसी वर्ण-विशेष से इतनी नफरत है
तो ज्ञात करो वो रावण भी तो ब्राह्मण था।



ये ऊंच-नीच की बेड़ियाँ भी उन्होंने बनाई
उन्हीं भेद-भाव भरी नियमों से तुम घायल हो
फिर भी एक रावण नाम के ब्राह्मण पर
आज तुम इतने क्यों कायल हो ?



जिन कारणों से तुम पीछे हो गए
उन दैवी आदर्शों को अपनाओ।
कथित स्वर्ण भी जो आदर्श भूल चुके
उनपर तुम चलकर दिखलाओ।



तब तुम्हें शिक्षा से वंचित करते थे
पर अब तो ये अपवाद नहीं।
गिरे वो भी अपने पापकर्मों के कारण
वरना आज आरक्षण पर करते विवाद नहीं।



क्या तुम भी वही रास्ता अपनाओगे
जिनसे कथित स्वर्ण आज गिर रहे।
मांस-मदिरा भक्षण के पथ पर चल
अपने ही उसूलों-आदर्श को चीर रहे।



पूछना चाहूंगा उन ब्राह्मणों से भी
वेद-शास्त्र और ग्रन्थ को यहाँ तुमने ही तो लाया
पुरुषोत्तम राम और कृष्ण को आदर्श बता
खुद ये भेद-भाव की गन्दगी क्यों अपनाया ?



अगर करते नहीं वंचित यहाँ तुम
एक पिछड़े हुए वर्ग विशेष को
यहाँ राज करने की औकात नहीं थी
मुग़ल, यूनानी या किसी भी देश को।


© बी.के. जयप्रकाश

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